पहली बारिश की बूँदें / ऋचा दीपक कर्पे
बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करती हूँ मैं, 
पहली बारिश की बूँदों का ... 
हर बार कुछ नया
अनोखा-सा एहसास लाती है 
वो कभी ख़ाली हाथ नहीं आती।...
पहली बारिश की बूँदें ...
मेरे बचपन में कागज़ की
कश्तियाँ लेकर आती थी 
और मुझे हँसाने के लिए 
उन्हें दूर तक बहा ले जाती थी ... 
पहली बारिश की बूँदें ...
अनगिनत रंगबिरंगे फूल लेकर आती थी 
इक जादुई खुशबू, मखमल-सी हरियाली
फूलों पर तितलियाँ मंडराती थी ... 
पहली बारिश की बूँदें... 
मुझे भीतर तक भिगो देने वाला
अहसास लेकर आती थी 
किसी अनदेखे अनजाने के सपनों का
इन्द्रधनुष सजा जाती थी... 
आज पहली बारिश की वही बूंदें
मेरी बचपन की सुहानी यादों का, 
कुछ पूरे तो कुछ अधूरे से मेरे ख्वाबों का
पिटारा लेकर आई है... 
और साथ लेकर आई है 
फिर से जी उठने की आशा, 
उम्मीदों की कुछ सुनहरी किरणें ... 
इसीलिए तो...
बड़ी बेसब्री से इंतजार करती हूँ 
मैं पहली बारिश की बूंदों का, 
वो कभी ख़ाली हाथ नहीं आती।
	
	