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पहली बारिश की बून्दों-सा / योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
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नई बहू घर में आई है
बन्दनवार लगे
चीज़ों से जुड़ना बतियाना
पीछे छूट गया
पहली बारिश की बूँदों-सा
सब कुछ नया-नया
कुछ महका-सा कुछ बहका-सा
यह संसार लगे
संकेतों की भाषा नूतन
अर्थ गढ़े पल-पल
मूक-बधिर अँखियाँ भी करतीं
कभी-कभी बेकल
गन्ध नहाई हवा सुबह की
भी अंगार लगे
परीलोक की किसी कथा-सा
आने वाला कल
ऊबड़-खाबड़ धरा कहीं पर
और कहीं समतल
कोमल मन में आशंकाओं
के अम्बार लगे ।