भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहली भोर / ऋषभ देव शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरस भर वह
उगलता रहा मेरे मुँह पर
दिन भर का तनाव
हर शाम!


आज
नए बरस की पहली भोर
मैंने दे मारा
पूरा भरा पीकदान
उसके माथे पर!!


कैसा लाल - लाल उजाला
फ़ैल गया सब ओर!!!