भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहली भोर / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
बरस भर वह
उगलता रहा मेरे मुँह पर
दिन भर का तनाव
हर शाम!
आज
नए बरस की पहली भोर
मैंने दे मारा
पूरा भरा पीकदान
उसके माथे पर!!
कैसा लाल - लाल उजाला
फ़ैल गया सब ओर!!!