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पहली वर्षा / पूरन मुद्गल
Kavita Kosh से
मौसम की पहली वर्षा पर
कुछ तुम लिखो
इससे पहले
बूँदें कुछ बेहतर लिख जातीं
अक्षर-अक्षर जोड़-जोड़ कर
धरती की कोरी तख़्ती पर
बूँदों ने हरियाली लिख दी
धरती की सोई सोंधी ख़ुशबू
उठ बैठी ले अंगड़ाई
चातक का सस्वर स्वाति-पाठ
वन-प्रान्तर का आतप हरती
शीतल फुहार
पहली जलधारा के स्वागत में
मल्हार राग के स्वर जागे
वीणा झंकृत
नाना रंगों के स्वप्न
हुए साकार ।