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पहले उससे ख़्वाब में झगड़ा करता हूँ / अमित शर्मा 'मीत'

पहले उससे ख़्वाब में झगड़ा करता हूँ
बाद में रोती आँखें चूमा करता हूँ

फूल भला क्यों इतराता है जबके मैं
उस पर बैठी तितली देखा करता हूँ

तन्हाई से जान छुड़ाने की ख़ातिर
घण्टों घण्टों भीड़ में घूमा करता हूँ

आवाज़ों की बस्ती में होकर भी मैं
ख़ामोशी से दिल बहलाया करता हूँ

वो ख़ुशियाँ वह अल्हड़पन वह बेफ़िक्री
अपनी हर तस्वीर में ढूँढ़ा करता हूँ