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पहले मेरे सुर्ख़रूपन को खिजाएँ ले गईं / ओम प्रकाश नदीम
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पहले मेरे सुर्ख़रूपन को खिजाएँ ले गईं ।
और फिर पत्तों को पतझड़ की हवाएँ ले गईं ।
रात जो दिल पर जमे थे आस के क़तरे उन्हें,
सुब्ह बेदारी के सूरज की शुआएँ ले गईं ।
कुछ उमीदें बँध गई थीं बादलों की डोर से
वो उमीदें भी बिना बरसे घटाएँ ले गईं ।
रौशनी के गीत गाते थे फ़सीलों के चराग़,
मस्लहत की आँधियाँ उनकी सदाएँ ले गईं ।
उस ज़माने के ख़लीलों को कहाँ ढूँढ़ें ’नदीम’
चोंच में उनको दबा कर फाख्ताएँ ले गईं ।