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पहले लगता था / फ़रीद खान
Kavita Kosh से
पहले लगता था कि जो सरकार बनाते हैं,
वे ही चलाते हैं देश ।
पहले लगता था कि संसद में जाते हैं
हमारे ही प्रतिनिधि ।
पहले लगता था कि सबको एक जैसा अधिकार है ।
पहले लगता था कि अदालतों में होता है इंसाफ़ ।
पहले लगता था कि अख़बारों में छपता है सच ।
पहले लगता था कि कलाकार होता है स्वच्छ ।
पहले लगता था कि ईश्वर ने बनाई है दुनिया,
पाप पुण्य का होगा एक दिन हिसाब ।
पहले लगता था कि मज़हबी इंसान ईमानदार तो होता ही है ।
पहले लगता था कि सच की होगी जीत एक दिन,
केवल आवाज़ उठाने से ही सुलझ जाता है सब ।
अभी केवल इतना ही लगता है,
कि सूरज जिधर से निकलता है,
वह पूरब ही है,
और डूबता है वह पच्छिम में । बस ।