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पहले वे बच्चे थे / नरेन्द्र जैन
Kavita Kosh से
पहले वे बच्चे थे
उनके आस-पास खिलौनों की
विस्मयकारी दुनिया थी
उन्होंने अपने लिए आदमी और औरत के
चेहरे चुन लिए
चारों तरफ़ वहाँ चेहरों का विशाल समुद्र था
वे
गुलाम हुए
हर कहीं वहीं उनके आस-पास
पत्थरों के बुत थे
भूलते गए खिलौनों की दुनिया
शोर करता चेहरों का समुद्र
सिर्फ़ याद रहा उन्हें
पत्थरों में प्रविष्ट होना
बुतों का बहुत बड़ा शहर था वह
जहाँ से आवाज़ गायब हो चुकी थी
कभी-कभार
आसमान से भटके हुए पक्षी
उन बुतों पर बैठे
लगातार शोर करते