पहले वो अपना जाल रखते हैं
हर सू कुछ दाने डाल रखते हैं
आये हैं दुश्मनी निभाते जो
दोस्ती की मिसाल रखते हैं
उनकी बातों में झूठ क्या ढूँढूँ
पास जो काली दाल रखते हैं
उनसे संभव नहीं कभी कुछ भी
आज को कल पे टाल रखते हैं
भेड़िये हो गये हैं अब शातिर
शेर की अब वो खाल रखते हैं
जीत मिलती कहाँ उन्हें ‘गरिमा’
हार का जो मलाल रखते हैं