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पहले से ही / संजय चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
इतने बड़े शहर में
नहीं मिलता एक कमरा
एक गिलास पानी
और थोड़ी-सी तसल्ली
एक मेज़
इस्तेमाल करने के लिए अपनी तरह
एक कुर्सी बैठने को चुपचाप
खिड़कियाँ नहीं मिलतीं
काग़ज़ों पर पहले से ही कुछ लिखा होता है।