पहलोॅ सर्ग / रोमपाद / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
रोमपाद मंत्री सें बोलै
”दुख के थाह मिलै नै,
जे पड़लोॅ छै विपद राज पर
मुक्ति के राह मिलै नै।
ई अकाल घनघोर भयावह
फटलोॅ-फटलोॅ धरती,
जे माँटी सें सोना-मोती
आज वहाँ छै परती।
सबके आँख अकासे दिश छै
चुटकी मेघ नै कन्हौं,
अन्नोॅ ले बिलखै पुरवासी
देखौ हम्में जन्हौं।“
रोमपाद के दुख के देखी
ऐलै ज्योतिष, गुरुजन,
देखै पोथी-पतरा ग्रह के
छूटै केरोॅ बन्धन।
ज्योतिषराज कहै छै नृप सें
”एक निदान मिलै छै,
राजपुत्री शांतो के जैमें
भाग्य सरोज खिलै छै।
अंगदेश के ऋषि कुमार
शृंगी जी मालिनी आबेॅ
शांता केरोॅ हाथ-हाथ लै
आपनोॅ ब्याह रचाबेॅ।
तेॅ अकाल ई जाबेॅ पारेॅ
अंगोॅ भाग्य संघरतै,
धरती के आँचल अन्नोॅ सें
फेनू होने भरतै।
लेकिन ई कोय सहज कार्य नै
ऋषि से ब्याह रचैबोॅ,
ई तेॅ बिभांडक मुनिये केॅ ही
होतै जाय चिढ़ैबोॅ।
यही वास्तें बची-बची केॅ
सबटा कारज होतै,
केना होतै, ई चिन्ता तेॅ
हमरोॅ मन केॅ गोतै।“
राजगुरु के बात सुनी केॅ
रोमपाद कुछ सोचै,
मन पर छैलोॅ घोर उदासी
भीतरे भीतर मोचै।
रोमपाद के चेहरा हँसमुख
बहुत दिनोॅ पर होलै
चिन्ता के बादल ठोरोॅ पर
हँसी-खुशी छै डोलै।