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पहाड़ी ऊँची एक दक्षिण दिशा में / बाबू महेश नारायण
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पहाड़ी ऊँची एक दक्षिण दिशा में
खड़ी थी सर उटःआए आस्माँ में;
बलाग़त से, हिमाक़त में खड़ी थी,
दरख़्तों के गले में एक लड़ी थी।
करुणामय परमेश्वर की वह पहाड़ी भी ज्योति प्रकाशक थी,
अजीब, अनेत, अभाष्य अगर थी तो भी लख गुण गायक थी।
नहीं वक़्त का डर, नहीं ख़ौफ़ अजल, वह पहाड़ी खड़ी की खड़ी ही रहेगी,
हज़ारों मरे हैं, हज़ारों मरेंगे, पहाड़ी अड़ी की अड़ी ही रहेगी।
इस लिए मौत का नहीं कोई डर,
बैठ जाता है उन मनुष्यों पर
जाके पर्वत सो हर वी पहाड़ ही धाई बने हैं।