पहाड़ी के पार
क्यों नहीं दिख पाता
कुछ भी?
दिखता था कल तक
सबकुछ...
मन्दिर में चहल-पहल
हर रोज़..
तो कभी
श्मशान की भीड़
अरे....अरे....
तोड़ लिए किसी ने
सितारे भी अभी-अभी
और...
यह किसने रोक दिया
हवा को?
अब तो…
आवाज़ें भी बन्द हो गई हैं
पहाड़ी के पीछे से !
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत