पहाड़ी गाँव में / कविता भट्ट
पहाड़ी गाँव की पगडंडी
और सड़क पर बिखरी
कुछ टूटी हुई शीशियाँ
कुछ बोतलों के ढक्कन
आँखें भरी याद आए
युवा लड़खड़ाते कदम
कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ
कुछ बिखरे हुए कंगन
बिखरे बाल डूबी साँसें
गहरे दुःख परदे झलमल
आह निकली एक दिल से
और तब थम गई धड़कन
गाढ़ा पसीना संस्कार मान
सब नशे में घोल आया
शेष- कुछ टूटी शीशियाँ
कुछ बोतलों के ढक्कन
ताश में सब झोंक आया
पास पत्नी के बचीं अब
कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ
और चन्द टूटे हुए कंगन
पत्नी झुर्रियाँ ओढ़ बैठी
अपने समय से पहले ही
बच गए बच्चों के पास
टूटे खिलौने , कुछ बर्तन
बस्ते और कॉपी पेन को
मिला था निश्छल बचपन
बीता ढाबों की टेबल पर
सोते बोरी पर, धोते जूठन
ऊँची पहाड़ी पर ऊँघता है
ढलते सूरज सा प्रतिदिन
शेष- कुछ टूटी शीशियाँ
कुछ बोतलों के ढक्कन