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पहाड़ी पै पत्थर के चट्टाँ बड़े / बाबू महेश नारायण
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पहाड़ी पै पत्थर के चट्टाँ बड़े,
समय की सृष्टि से वाँ थे खड़े,
अजब एक सनत से खड़े थे वह सारे,
ज़री सी ज़मीं पर बहुत ही किनारे;
अगर लोग देखें तो होवे यकीं,
कि गिर जाना उनका है मुशकिल नहीं
वो लेकिन अगर भीम भी आन कर,
हिलावें तो टसके न एक बाल भर,
अगर नीचे जाकर कभी इनको देखें
तो मालूम होवे कि सब यह ख़फ़ै हैं
भक्ति-रस उत्पन्न न हो जिस मन में यहाँ वह मन ही नहीं
कीच बराबर जीव वह हैं जो मन में बिराजित यह धन ही नहीं।