भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहाड़ी हवा / ऊलाव हाउगे
Kavita Kosh से
|
तुम ठण्डी कठोर पहाड़ी हवा थीं।
तब एक अँधेरा पर्दा उठ खड़ा हुआ
और उसने तुम्हारी ताकत को बिखेर दिया। मृत्यु!
अब तुम रेंगती हो -- एक पराजित हवा
गुनगुनी ढलानों के साथ-साथ।
अंग्रेज़ी से अनुवाद : रुस्तम सिंह