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पहाड़ का दर्द / पवन चौहान
Kavita Kosh से
पहाड़ों पर फैला सौंदर्य निहारने
चले आते हैं दूर देश से वे
अच्छा लगता है उन्हे
प्रकृति की गोद में खेलना
उसे करीब से छूना
समेट लेना चाहते हैं वे
अपनी ऑंखों में हर नजारा
न चाहते हुए भी चढ़ जाते हैं
दुर्गम पहाड़ों पर
जान जोखिम में डाल
कल्पना मात्र से ही जी लेना चाहते हैं वे
पहाड़ का कठिन जीवन
मुश्किल रास्तों का लंबा सफर
पर वे कभी समझ नहीं पाते
पहाड़ का दर्द
उसका तनाव
जो बढ़ जाता है
उनके छोड़े गए कबाड़ पर
उनकी हर दखलंदाजी
मदमाती हर पदचाप पर।