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पहाड़ के भीतर-1 / नवनीत पाण्डे

चढते हुए
पहाड़ पर
रास्तों पर चलने के
अभ्यस्त पैर
डगमगाए कई बार
बहुत डराया
चेताया पहाड़ ने
पहली बार महसूसा
और जाना
पहाड़ों से बतियाते हुए
पहाड़ के भीतर
हाड़ ही नहीं
एक कोमल हृदय भी है
नेह भरा