भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहाड़ पर बदलता मौसम / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
मैंने खेत पर कविता लिखकर
एक बड़ी गलती कर दी
लोग उसे बिजूका समझकर
पक्षियों को डराने की चीज समझ बैठे
मैं उनसे कैसे कहूँ यह बिजूका नहीं
आदमी और खेत के बीच तनी हुई
बैल की पीठ है
जिसे जितना पलोसते जाओ
वह और काँपती जाती है।
मेरे छोटे-छोटे सच
आखिर किसे सौंप दूँ मैं अपने
छोटे-छोटे झूठ, छोटे-छोटे सच
पिता का भय
पत्नी का प्यार
बच्चों का भविष्य
अक्सर आ जाता है बीच में
शायद वे सब चले जाएँगे एक दिन
इसी तरह मेरे साथ
नहीं जान पाएँगे लोग
मेरे छोटे- छोटे झूठ
मेरे छोटे- छोटे सच।