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पहाड़ पर बैठे एक आदिवासी प्रेमी-युगल की बातचीत / अशोक सिंह

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अब हम कहां मिलेंगे फूलमनी
किस जंगल किस पहाड़ पर
मिलेंगे हम दोनों!

गाँव के पिछवाड़े का सारा जंगल
कट गया धीरे-धीरे
अब तो पहाड़ भी काटे जा रहे हैं !
देखो, न पिछले कुछ सालों में ही
न जाने कहां गायब हो गए इतने सारे पहाड़ !
थोड़े बहुत, जो बचे-खुचे हैं
वे हो गए हैं नंगे और बदरंग

इक्के-दुक्के जो रह गए अछूते कहीं दूर-दराज में
सुना है, वहाँ नक्सलियों का डेरा है
ख़तरे से ख़ाली नहीं है
वहाँ हम दोनों का मिलना
पता नहीं कब कोई पुलिस वाला
नक्सली कहकर पकड़ ले जायें हमें
जैसे अभी हाल में ले गए
काठी कुंड के सालदाहा पहाड़ी से
रूपलाल और निरोजनी को पकड़कर

अब वह समय नहीं रहा फूलमनी
नहीं रह गया वह सब कुछ अपना
यह जो बस्ती की सीमा के पार
छोटी-सी कुरुवा पहाड़ी भी थी अपनी
जिस पर कभी मिल लेते थे हम दोनों
गाय-बकरियाँ चराने के बहाने
अब वह भी "सृष्टि उद्यान' में बदल गई

जहाँ न तो वे पलाश के पेड़ रहे
न बाँसों की झुरमुट
कँटीले तारों के बाड़ लग गये हैं
लग गया है गेट पर कड़ा पहरा वहाँ
अब वह पहाड़ी हमारी नहीं रही फूलमनी
मनोरंजन पार्क में बदल गई है
बाबुओं के बच्चों बहू-बेटियों के लिए
जहाँ हम जैसो को अन्दर जाने की मनाही है

देखा नहीं उस दिन
जब उसके पिछवाड़े बैठ हम दोनों
बतिया रहे थे अपना सुख-दुख
किस तरह पहरेदार ने चोरी के नाम पर
डाँट कर भगाया था हमें !

अब ऐसे में जब कहीं कोई सुरक्षित जगह
नहीं बची हमारे मिलने की
तुम्हीं बताओ फूलमनी
हम कहाँ मिलें तुमसे
किस जंगल
किस पहाड़ पर मिलें हम दोनों !