पहाड़ पर रास्ते / लीलाधर जगूड़ी
एक बार एक आदमी के पीछे चलता यह रास्ता एक दिन
पहाड़ के सिर पर पहुँच गया
और उसी के पीछे-पीछे दूसरी ओर उतर गया यह रास्ता
उसके बाद लोग नई नई घटनाओं के साथ
उसी रास्ते से चढ़े और उसी के लगाए हुए रास्ते से
दूसरी ओर उतर गए
आसमान में सर्पाकार पेड़ की तरह चढ़े हुए
इस रास्ते के दोनों ओर कई और रास्ते फूटे हैं
ये रास्ते कैसे फूटे?
कई बार तो ये तब फूटे जब कोई इस रास्ते से बचना जाता था
और कुछ तब फूटे जब कोई इस रासते से भटक जाता था
कुछ नए रास्ते उन नए भटके हुओं ने भी बनाए
जो फिर इसी रास्ते पर चले आए
कुछ लोग तो कहीं के कहीं पहुँच गए
कुछ बीच में ही खत्म हो गए
कुछ भटकने के बाद भी पहाड़ लाँघ गए
कुछ ऐसे भी रहे जो इस रास्ते के फेर से बचना चाहते थे
वे पहुँचे और उन्होंने जाना कि उधर भी घर
बनाए जा सकते हैं
क्योंकि उधर भी झरने हैं, समतल टुकड़े हैं
ढाल हैं ताल हैं
रास्ते छूटते चले गए। बनते चले गए
रास्ते निकलते चले गए। बदलते चले गए
इन रास्तों के बीज आदमी के दिमाग से पैरों तक फैले हुए हैं
ढालानों को समतल बनाया हवा ने, पानी ने
और अंत में आदमियों ने
जो हवा पानी और जंगली जानवरों से लड़े
उन्होंने ये मेड़ें बाँधी हैं
नाखूनों से गूलें खोदी और पानी की उँगली-भर मोटी धार
घरों तक ले आए
सारे रास्ते घरों तक आ गए
आदमी पैर धोकर घर के अंदर जाने लगा
तब क्या घर पहुँचते ही रास्तों का अंत हो गया?
नहीं, बल्कि हर कोई हर बार एक नए रास्ते की
तलाश में सोता-जागता था
तब कुछ रास्ते पैर के बजाय हाथ से निकलने लगे
कुछ रास्ते चलने के बजाए रुकने से निकलने लगे
कुछ रास्ते अँधेरे से भागने के कारण निकले
कुछ उजाले से भागने के कारण निकलने लगे
तब से हालत ये है कि करवट बदलते ही आदमी
किसी नए रास्ते पर पहुँच जाता है
जो पचास और रास्तों से जुड़ जाता है
अब अलग से चलने के लिए यहाँ कोई जगह नहीं है
बस एक ही रास्ता नया हो सकता है
इन सब रास्तों को जान कर उस रास्ते को जानना
जो यादा दूर तक जाता हो
जो विध्नों से निपटने के साधन देता हो
जिनमें मेरा साहस भी एक है
कम से कम एक पड़ाव और आगे मैं उसे ले जाना चाहता हूँ
यहीं तक यह रास्ता मेरे आगे-आगे चलेगा
जहाँ तक यह पहले कभी किसी के पीछे-पीछे चला था
शेष रास्ता मुझे बनाना है
जो सिंर्फ विपत्ति में ही दिखाई देगा