भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहाड़ / बालकृष्ण गर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई न मुझे सकता उखाड़,
कोई न मुझे सकता पछड़;
मत करना मुझसे छेदछाड़,
मैं हूँ भारी-भरकम पहाड़।
[रचना: 7 मई 1996]