भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहाड़ / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
Kavita Kosh से
चित्रकार जगदीश स्वामीनाथन के प्रति स्नेह और श्रद्धा के साथ
भय से मुक्त किया तुमने
पर आशंका से नहीं ।
जाने कब पहाड़ यह,
संतुलन बिगड़े
जा अतल में समाए
या फिर महाशून्य में
विलय हो जाए -
जिसे मैं अपनी छाती पर ढो रहा हूँ |
जिसके लिए निर्मल पारदर्शी जल
हो रहा हूँ |