पहिचान / मनोज शांडिल्य

मौन, के छह तों?
व्रतीक अथाह अंतरशक्ति, आकि
अशक्तक अर्थहीन आर्तनाद?

कहह –
तों करैत छह चीत्कार, आकि
अत्याचारक शब्दहीन सत्कार!

नः!
तों औखन छह मौन..

सुनह!
जाबति रहतह कंठ निष्प्राण
संधिग्दहि रहतह तोहर पहिचान…

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