भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहिले सरसुत बुध मनाऊँ दूजे गुरू गोविन्द मनाऊँ / बुन्देली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहिले सरसुत बुध मनाऊँ दूजे गुरू गोविन्द मनाऊँ।
गढ़ पर्वत सें उतरी गंगा काटत कोट विलासत लंका।
लंका जीत राम घर आये नगर अजुद्धा बजत बधाये।
लिखिया लगुन जनकपुर सें आई राजा दशरथ जू के हाथ धराई।
सजी है बरात जनकपुर आई देखन उमही नगर की लुगाई।
बाजत ढोल शहनिया न्यारी रामतूलन की लगी तुतकारी।
राम कुँवर जब गलियन आये गलियन गर्द उड़ावत आये।
राम कुँवर जब नदियन आये सोने की नाव जनक डलवाये।
राम कुँवर जब बागन आये सब वृक्ष न मिल सीस नवाये।
राम कुँवर जब कुँअलन आये चंदन पटरी जनक डरवाये।
राम कुँवर जब अथाइन आये सब पंचन मिल सीस झुकाये।
राम कुँवर जब डेरन आये सोने जनवासे जनक डरवाये।
राम कुँवर जब पौरन आये कंचन कलश जनक धरवाये।
राजा जनकजू ने टीका कीनौ सोने के सूत जनेऊ दीनौ।
दशरथ चढ़ाये की सब शोभा ल्याये सबरेऊ गानौ सोने को ल्याये
पाटहु पाट मिसरो ल्याये और जलन्धर फरिया ल्याये।
राम कुँवर जब भाँवरन आये मुतियन चौक जनक पुरवाये।
पलट राम जब डेरन आये रसोई की जुगत जनक करवाये।
ऐसी विध सों तपियो रसोई जाँ माछी मकरी न हांइँ
ऐसी सुघर रसोइन आई सपर खोर धोती धो ल्याई।
ब्रह्मा न्यौते विष्णु न्यौते राम लखन चारऊ भैया न्यौते।
चंदा सूरज दोऊ भैया न्यौते गंगा जमुन दोऊ बैनें न्यौती
बारहु वन की वनस्पति न्यौती छत्तीसउ कोट के देवता न्यौते।
भूलें होंय खबर कर लियौ रूठे होय मना सब लियौ।
अम्बा की पातर छेवले के दोना सोने की सींक संवारे रूच दोना।
भात बनौ जैसें बेला कैसी कलियाँ असी कोस नों महकत जाय।
बरोला परोसे जैसे चक्र बिहारी मड़ोला परोसे टिहुनी संभारी।
खाँड जो परसी मुठी बगरई ऊपर घी की धार लगाई।
घिया जो परसो जैसे लौंगें गारीं सबरी सभा में महकत जाई।
भूले होय सो खबर कर लियो रूठे होय मना सब लियो।
ज्ञानी होंय सो गारी सुनवै मूरख होय सो भात समैंटें।