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पहिल मास चढ़ु अगहन, देवकी गरभ संओ रे / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पहिल मास चढ़ु अगहन, देवकी गरभ संओ रे
ललना रे, मूंगक दालि नहि सोहाय, केहन गरभ संओ रे
दोसर मास चढु पूस, देवकी गरभ संओ रे
ललना रे, पूसक माछी ने सोहाय, कि देवकी गरभ संओ रे
तेसर मास चढ़ माघ, देवकी गरभ संओ रे
ललना रे, पौरल खीर ने सोहाय, कि केहन गरभ संओ रे
चारिम मास चढु़ फागुन, देवकी गरभ संओ रे
ललना रे, फगुआक पूआ ने सोहाय, कि देवकी गरभ संओ रे
पाँचम मास चढु़ चैत, देवकी गरभ संओ रे
ललना रे, चैत के माछ ने सोहाय, कि केहन गरभ संओ रे
छठम मास चढु़ बैसाख, देवकी गरभ संओ रे
ललना रे, आम के टिकोला ने सोहाय, कि केहन गरभ संओ रे
सातम मास चढु जेठ, देवकी गरभ संओ रे
ललना रे, खूजल केश ने सोहाय, कि केहन गरभ संओ रे
आठम मास चढ़ु अखाढ़, देवकी गरभ संओ रे
ललना रे, पाकल आम ने सोहाय, कि केहन गरभ संओ रे
नवम मास चढु साओन, देवकी गरभ संओ रे
ललना रे, यिा के सेज ने सोहाय, कि केहन गरभ संओ रे
दसम मास चढु भादव, कि देवकी गरभ संओ रे
ललना रे, देवकी दर्दे बेयाकुल, दगरिन बजायब रे
जब जनमल जदुनन्दन, खुजि गेल बन्धन रे
ललना रे, खुजि गेल बज्र केबार, पहरू सब सूतल रे