पहुँचलनि गूड़ / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
पहुँचलनि गूड़ केहुनी लग धरि
पहुँचलनि गूड़ केहुनी लग धरि
उनटा कय हाथ चटै’ छथि सब।
लेखक गण ‘क’ ‘ख’ लिखि फानथि,
अपनाके युग-गुरु कय मानथि,
तुक पर थुक दय, कविता कहि-कहि,
बुलि-बुलि कवि ज्ञान छँटै’ छथि सब।
नेतागण ताने भरथि सतत,
हुरदुङ जनता ने करय सतत,
तेँ हेतु आइ युग-पुरुषलोकनि
व्यर्थे दिन-राति खटै’ छथि सब।
धरती पर बहुतो छथि पिशाच
जनिका छनि लागल धधकि आँच,
पुरुषार्थ एकताकेर बलेँ
गौरवसँ सैह फट’ छथि सब।
ओ हितक बात मानथु किऐक,
ओ शास्त्र-तत्त्व जानथु किऐक,
तत्त्वक जे क्यो छथि जननिहार
रस्तासँ साइ हटै’ छथि सब।
उपकारी गीरह ओझराबय
तँ कोना विपक्षी-सोझराबय,
बिनु बुझनहिं अपनहि दाँतक तर
दय आङुर अपन कटै’ छथि सब।
भरिबीत जगह अछि देल गेल
अछि लोक ताहिमे रेल-पेल
नहि अँटत सूइ, बनि फार मुदा
ततबेमे पैसि अंटै’ छथि सब।
छनि लागि रहल सबकेँ संचर,
रस्ते भेलाह बहुतो पंचर,
बिनु सुलेशनहि हड़बड़-हड़बड़
बिनु तकनहि छिद्र सटै’ छथि सब।
रचना काल- 1948 ई.