भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहेली / ज्योतीन्द्र प्रसाद झा 'पंकज'
Kavita Kosh से
यह नहीं समझा कि जग में
फूल भी क्यों शूल बनता
कुसुम का कोमल हृदय क्यों
झुलस कर है शूल बनता।
अमृत के वर विटप तल क्यों
जहर का है कीट पलता
पूर्णिमा के चॉंद से भी
तीव्र हालाहल निकलता।
पुण्य की शुचि ओट में ही
पाप का संसार पलता।
प्रणय की बुझती चिता पर भी
निठुर छल है विहॅंसता।
तूफान में पतवार कोई
छीनता मॅंझधार कैसे?
गरलमय कटु प्यार कोई
पालता चुपचाप कैसे?