पहेली / मुकेश प्रत्यूष
अनिद्रा के परिचायक नहीं है सपने 
नींद से गहरा रिश्ता है सपनों का. जागी आंखों में भी
कभी-कभी  उतर आते हैं सपने. अधमुंदी आंखों के आगे
सपनों का आना आम बात है.
सपनों में देखता है अफसर हाथ बांधे मातहतों की कतार
और तलाशता है कारण उबलने का
ताकि उतर आए नीचे चुपचाप चढ़ा हुआ रक्तचाप   
मंत्री देखता है 'राजा` की कुर्सी और उसका पांवदान
और ऐंठता है देह
बैठने की नई-नई मुद्रा मेंं
'राजा` देखता है भीड़ में अकेला है वह
कभी दूर रेगिस्तान में ढूहों के बीच भटकता
कभी घने जंगल में भेड़ियों की ओर 
हडि्डयां फेंकता हुआ 
 
सोचता है राजा क्या होगा जब नहीं बचेंगे जूठन
गवाह हैं दंतकथाएं -
चिंता से उड़ जाती है राजा की नींद
चिरौरी पर उतर आता है राजा एक अदद नींद के लिए
उतार देता है मुकुट 
मान लेता है दरिद्र को नारायण
दंत कथाएं तो दंत कथाएं हैं
आज कहां ईर्ष्या से भरता है राजा कूबड़ धरती पर
चिलचिलाती धूप में नींद में डूबे किसी को देखकर 
फिर क्यों पटकेगा ले जाकर उसे अपनी सेज पर
धत्
छोड़ो
कहां नींद कहां राजा
 राजा तो राजा है
राजा गया वन में : बूझो अपने मन में
	
	