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पाँख में जोश / हरेश्वर राय

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हमार जहिआ से नैना दू से चार भइल बा
हमरा भितरा आ बहरा बहार भइल बा I

पहवा फाटल हिया में अंजोर हो गइल
पाँख में जोश के भरमार भइल बा I

जाल बंधन के तहस-नहस हो गइल
सऊँसे धरती आ अम्बर हमार भइल बा I

पूस के दिन बीतल बसंत आ गइल
देंह फागुन महीना हमार भइल बा I

महुआ फुलाइल आम मोजरा गइल
हमरा दिल में नसा बरियार भइल बा I