पाँचौ तत्व माहिं एक तत्व ही की सत्ता सत्य,
याही तत्त्व-ज्ञान कौ महत्व स्रुति गायौ है ।
तुम तौ बिवेक रतनाकर कहौ क्यों पुनि,
भेद पंचभौतिक के रूप में रचायौ है ॥
गोपिनि मैं, आप मैं बियोग औ’ संयोग हूँ मैं,
एकै भाव चाहिये सचोप ठहरायौ है ।
आपु ही सौं आपु कौ मिलाप औ’ बिछोह कहा,
मोह यह मिथ्या सुख दुख सब ठायौ है ॥15॥