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पाँच आलोचक / अनिल जनविजय

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पाँच आलोचक हिन्दी में हैं पाँचों है लट्ठमार
कवि-कथाकार उनसे कहते तुम सब हो बेकार ।

आलोचक अपनी लुँगी खोलकर मारें ऊँची धार
हमसे कुछ लिखवाना है तो मालिश करो, यार ।

कवि उन्हें धमकाते हैं -- जाओ, बेचो आलू-चना
ज़रूरत नहीं तुम्हारी, किताब बिके समीक्षा बिना ।

कथाकार भी उनसे लड़ते, जा लोचक तू जा
भगा देते उन्हें अपने पास से, बकवास मत सुना ।

पाँच आलोचक हिन्दी में हैं, सब पाँचो बेरोज़गार
लिखना-पढ़ना बन्द हो गया, ढूँढें कोई जुगाड़ ।