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पाँच छोटी कविताएँ / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

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एक उदास लड़की और मैं

कल मैं ही था उस उदास लड़की के साथ
मैंने ही उसे कहा था-
तुम्हारी उदासियाँ इस मॉल की रोशनियाँ हैं
कुछ क्षण रुक कर उसने कहा-
मैं अपने दोस्त को एक गिफ्ट छू कर आई हूँ
तब मेरी उँगलियों में बहुत उदासी थी
इसीलिए तो सारी लाइटें उदास हो गईं

चलो मैं अपन पर्स देखता हूँ मैं ज़रा-सा हँसा
और तुम भी अपना पर्स देखो
फिर कुछ दिनों तक मॉल की रोशनियाँ
हमारी आँखों में चमकती रहीं थीं

 

सब जगह तुम

रोज़ काम से कमरे पर लौटता हूँ
अक्सर शाम तुम आसपास होती हो

मैं एक रंग से भर जाता हूँ
तुम शाम का रंग हो जाती हो
और मुझे शाम का रंग अच्छा लगता है
मेरी आँखों में फूलों की तरह खिलता है

मेरी आँखें फूलों की तरह दुनिया देखती हैं
और तुम सब जगह मुझे दिखाई देती हो।

 

आधा बिस्किट

तुम्हारे हाथों से तोड़ा आधा बिस्किट
संसार का सबसे खूबसूरत हिस्सा है
जहाँ कहीं भी आधा बिस्किट है

तुम कहाँ-कहाँ रख देती हो अपना प्यार
बिस्किटों में चारा के सुनहरे पन में
पानी के गिलास और विदा की सौंफ में

तुमने कोने कोने में रख दिया है
हर कहीं मिल जाता है तुम्हारा प्यार

 

जीत -१

मुझे डर था एक दिन मैं हार जाऊँगा
उस दिन से मैं हारना शुरू हो गया
फिर मैं खुद मैं वापस आया
अपने जेहन को स्वीमिंग पूल की तरह देखा
उसमें कूदना मेरा सौभाग्य हो गया
एक लहर उठी और मेरी जीत बन गई।

 

जीत -२

कुछ लोग आए मेरे सामने से दौड़ गए
कुछ लोगों ने कहा वे दौड़ रहे हैं
तो मुझे भी दौड़ना चाहिए मैंने पूछा
ज़रूर उन्होंने कहा और मुझे देखने लगे

थोड़ी देर में सब धूमकेतु बन गए
पृथ्वी की कक्षा से क्षितिज से गुज़रते हुए
पूरी दुनिया उन्हें देख रही थी
वे पृथ्वी की कक्षा से बाहर हो गए।