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पाँच नदिया रामा, एक बहइ धरवा रामा / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
पाँच नदिया रामा, एक बहइ<ref>बहती है</ref> धरवा रामा।
ताहि बीच कमल रे फुलायल हो राम॥1॥
फूल लोढ़े गेली बारी<ref>घर से सटी हुई फुलवारी या वाटिका, जिसमें फल-फूल, साग-सब्जी की खेती होती है</ref> सारी<ref>साड़ी</ref> मोरा अटकल डारी।
गुरु बिनु केउ न<ref>कोई नहीं</ref> छोड़ावेइ<ref>छुड़ाता</ref> हो राम॥2॥
फुलवा लोढ़िय लोढ़ि, भरली चँगेरिया<ref>चँगेली, एक प्रकार की डलिया, जो सींकी की होती है</ref> राम।
सतगुरु अयलन लियावन हो राम॥3॥
छोडु़ छोड़ु संघ के सथिया, आझ<ref>आज</ref> मोरे आँचरवा हो राम।
सतगुरु के सँघवा, अब हम जायब हो राम॥4॥
कहत कबीर दास, पद निरगुनियाँ राम।
संत लोग लेहु न, विचारियऽ हो राम॥5॥
शब्दार्थ
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