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पाँच मुक्तक / गिरिराज शरण अग्रवाल

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1.
बंजरों में जल मिलेगा, प्यास तो बाकी रहे
दिल के अंदर दर्द का एहसास तो बाकी रहे
किसलिए बे-आस होकर राह तकना छोड़ दूँ
कोई आए या न आए, आस तो बाकी रहे

2.
जिनको पानी है सफलता, जिनको करना है सफर
ठोकरें खाते हैं पर हटते नहीं हैं राह से
अंकुरित होता है पौधा दोस्त धरती चीरकर
कितना कोमल है, मगर भरपूर है उत्साह से

3.
शांत मुस्कानें अधर पर फैलती खिलती रहें
घर में बस धन ही नहीं हो, प्यार का सागर भी हो
मन के भीतर भी अँधेरे रास्तें है हर तरफ़
रोशनी बाहर नहीं इंसान के भीतर भी हो

4.
जिंदगी धरती से कटकर अर्थ से कट जाएगी
अपनी इस धरती के बदले आस्माँ मत लीजिए
सिर्फ़ रिश्ता ही नहीं, टूटेगा मन भी आपका
दोस्तों का भूलकर भी इम्तिहाँ मत लीजिए

5.
मोह को घर-बार के मत साथ में लेकर चलो
यात्रा से जब भी लौटोगे तो घर आ जाएगा
सिर्फ साहस ही नहीं, धीरज भी तो दरकार है
सीढ़ियाँ चढ़ते रहो, अंतिम शिखर आ जाएगा