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पाँत कुरजाँ की / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
गहरी और चुप है रात
चीरती जिस को अचानक
गुज़रती है पाँत कुरजाँ की:
नींद में पड़ी सुरताँ उचट जाती है।
परों की फड़फड़ाहट
किसी खोती हुई दुनिया-सी
सुन्न गहरी रात के
हर एक पत्ते में, बूँटे में
रमती व्याप जाती है।
(1984)