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पाँवपोश / रश्मि रेखा

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सबके स्वागत में बिछाये पलक पाँवडे
हर आने-जाने वालें पाँवों की धूल
माथे पर चढ़ाता
दरवाजे के ठीक बीचो-बीच बिछा है
पाँवपोश

बढ़े हुए पाँवों को आगे का रास्ता दिखता
एक घर के भीतर की ओर
दूसरा बैठक की ओर खुलता
रास्ते गलियारे के भी होते है
सत्ता के राजनीति के
कुछ इस पर पैर पोंछ कर पार कर लेते है
सपनों की कई-कई दहलीजें
कुछ ठिठक कर बैठ जाते हैं इसके इर्द-गिर्द
अपनी हैसियत का ख्याल कर
टटोलने लगते हैं राह
कुछ जुड़ जाते है इससे
आजीविका की उम्मीद में
और एक दिन ख़ुद बन जाते है
 पाँवपोश

इसे रखे जाने की जगह से तय होता है
इसका अपना आकार
अलग-अलग लोगों के लिए
अलग-अलग होता है
पाँवपोश
चहारदीवारी को बाहर की धूल से बचाता
एक पल नया दूसरे पल पुराना होता रहता है यह
कभी ख़त्म नहीं होता
पाँवपोश का वजूद