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पाँवों में चुभ रहा जो हसीं ख़ार देख कर / रंजना वर्मा
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पाँवों में चुभ रहा जो हसीं खार देखकर।
डरने लगा है दिल दुखी संसार देखकर॥
गिरने की भी चिंता न कोई मौत का है डर
जी डर रहा है वक्त की रफ़्तार देखकर॥
हँसते थे लोग देख कभी मुफ़लिसी मेरी
जलते हैं वह बढ़ता हुआ व्यापार देख कर॥
जिसने छलाँग मार दी वह पा गया रतन
वे हाथ रिक्त जो डरे मझधार देख कर॥
हिंसा जबर जिना से भरे हैं सभी पन्ने
डरता है दिल तो रोज़ ही अखबार देख कर॥
चिनगी दिखी जरा-सी वहीं आस जग गयी
दिल काँपता रहा घना अँधियार देख कर॥
देखें न सिर्फ़ वेश न सूरत सराहिये
सम्मान दीजिये सदा किरदार देख कर॥