Last modified on 17 जुलाई 2020, at 21:46

पाँव जब राह पर बढ़ाते हैं / कैलाश झा 'किंकर'

पाँव जब राह पर बढ़ाते हैं
दीप आँखों में झिलमिलाते हैं।

दोस्ती जान से भी है बढ़कर
आखिरी सांस तक निभाते हैं।

 जो उगलते हैं आग ही हरसू
वो तो दिल में नहीं समाते हैं।

माफ करने में हैं बहादुर जो
वैसे इन्सान मुझको भाते हैं।

साथ रहतें हैं साथ रह लेंगे
बे-वजह लोग आजमाते हैं।

होती छोटी ही ज़िन्दगी "किंकर"
लोग पदचिह्न छोड़ जाते हैं।