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पांखी / दीनदयाल शर्मा
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लूखौ सूकौ
जिकौ भी
मिलज्यै
खा ल्यै ।
का'ल री
कोई चिन्त्या नीं
का'ल री का'ल देखै
अर
उड ज्यै
पांख्यां फैलाय'र
खुलै असमान में
भळै
आपरां री आवै ओळ्यूं
तद
सूरज छिपण सूं
पै'लांईं आ ज्यै
आपरै आ'लणै
आपरां रै बीच
बातां सारू ।