भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पांगळो / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरखीज रैयो है
आखो जगत
कै चांद माथै पूगग्यो आदमी
अबै
आ बात अलायदी है
कै बींनै रैवणो कोनी आवै
धरती माथै
भर कोनी सकै बो
सांस अर सांस बिच्चै बापरियोड़ी
थोथ !