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पांचजन्य कहाँ बजा है? / संजय तिवारी

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तुमने कभी भीष्म को देखा?
बादल में चमकती बिजली की रेखा
या कि युग में संकल्प का अवतार
कितना कातर? कितना लाचार
सभी से उचित व्यवहार
खुद का नहीं कोई कारोबार
राहतरा के सिंहासन की मर्यादा
लिखित मूल्यों का डर ज्यादा
क्षोभ और करुणा पर भारी राजधर्म
नहीं समझ सके
समाज का मर्म
जब नैतिक चेतना हो गयी अवरुद्ध
चाह से भी नहीं टाल सके युद्ध
उन्हें हस्तिनापुर से आस्था की पड़ी थी
भूल गए कि
द्रौपदी की मर्यादा
हस्तिनापुर से बहुत बड़ी थी
एक स्त्री की क़तर वेदना
सुन कर भी रहे निश्चेष्ट
दमन की सीमा तक
केवल चुप ही रहे कुलश्रेष्ठ
पीढ़ियों में
सभी से ज्येष्ठ
ज्ञान के सागर थे गौतम
वे भीष्म पितामह थे
गंगापुत्र हो कर भी अनाथ थे
क्योकि धमक्षेत्र में
कुरु क्षेत्र में
दुर्योधन के साथ थे
महाज्ञानी और उनकी प्रतिज्ञा
कभी संभव नहीं अवज्ञा
उस भीष्म को भी बिलखते देखा है
इच्छा मृत्यु का वरदान था
मृत्यु चुनना भी आसान था
फिर भी करनी पड़ी मृत्यु के लिए
लम्बी प्रतीक्षा
विधि से ही नियंत्रित है
आपकी भी इच्छा
तुम भीष्म से बड़े नहीं थे
उस तरह
खुद के जीवन से लडे भी नहीं थे
गीता से भी बड़ा था भीष्म का ज्ञान
फिर भी नहीं था उन्हें अभिमान
भीतर से चाहे जितने भी रहे क्रुद्ध
पर कभी नहीं गए
सनातन के विरुद्ध
सनातन को देकर चुनौती
नहीं जीत सकते कोई युद्ध
युद्ध उन्माद है
युद्ध आघात है
युद्ध संघात है
शांति के अंकुरण के लिए
क्रांति का परिणाम है युद्ध
अधर्म पर धर्म की विजय
का भी नाम है युद्ध
प्रश्न यह है कुरुक्षेत्र कहा सजा है
पांचजन्य कहा बजा है?
जीवन है तो वह भी बजेगा ही?
हर क्षण एक कुरुक्षेत्र सजेगा ही
जीवन जीने के लिए मिला है
काश?भीष्म सा समझ पाते
इस धर्म क्षेत्र में
पलायन तो न सिखाते।