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पांचमोॅ सर्ग / अतिरथी / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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‘जेकरोॅ गोड़ पुण्य पर टिकलोॅ
जेकरोॅ साथी दान-सत्य छै
जेकरा आपनोॅ हित नै बांधै
दुसरे लेॅ सब कृत्य कृत्य छै।’

‘छल सें विजय, विजय नै छेकै
मानवता के ई तेॅ द्रोही
जे कि सत्य पर टिकले रहतै
जन-इतिहास बनैतै वोंही।’

‘चाहे कतनो बड़ोॅ विजय ऊ
पाप-पंथ पकड़ी जे पाबै
ऊ आबै वाला पीढ़िये नै
मानवतो केॅ खूब लजाबै।’

‘छल सें यश की हुएॅ टिकाऊ
बारिस में पानी के फोका
जन्मै जेन्हैं, फूटै ओन्हैं
छल-गरमी में लू रोॅ झोंका।’

‘पाप भले बोली लेॅ कुछुवो
पुण्य कभी भी ऊ की होतै
नदी किनारा की पैतै वें
रेगिस्ताने में ऊ रोतै।’

‘जेकरोॅ गोड़ पुण्य पर टिकलोॅ
जेकरोॅ साथी दान-सत्य छै
जेकरा आपनोॅ हित नै बांधै
दुसरे लेॅ सब कृत्य कृत्य छै।’

‘दुसरै लेॅ जे जीयै, मरै छै
दुसरे लेॅ जेकरोॅ छै जीवन
वही धरा के देव कहाबै
ओकरे जीवन सफलो पावन।’

‘वही गढ़ै इतिहास नया केॅ
वही भावी केॅ रस्तो दै छै
ओकरै सें सम्मानित देशो
ओकरै युग-युग कल्पें पूछै।’

‘जे सिंहासन लेॅ ही सोचै
ओकरै लेॅ छल-छद्म करै छै
एक्के बार मरै के बदला
दिन में ही सौ बार मरै छै।’

‘जेकरा लेॅ सिंहासन सब कुछ
नर-नरता केॅ तुच्छ बुझै छै
रातोॅ में बस ओकरे फोटू
पुण्य कर्म केॅ पाप बुझै छै।’

‘गद्दी लेॅ केकरो गर्दन केॅ
कभी उतारी लै जे पापी
सिंहासन पर दौड़ी बैठै
मानवता के ठोठोॅ चाँपी।’

‘नर जेकरोॅ लेॅ गाजर-मूली
युद्धभूमि के कुक्कुर-माँछी
जे धर्मो के, पुण्यफलोॅ के
ठोठो चीपै बीछी-बीछी

‘की होतै नरभूषण ऊ नर
ओकरोॅ छै इतिहासे छोटोॅ
भीतर सें ऊ फोंके फोंकोॅ
ऊपर सें ही लागै मोटोॅ।’

‘ऊ सचमुच में नरपति छेकै
जे ई भूलै नै छै कभियो
कौनें हमरा गद्दी देलकै
के पीछू ताकत रं अभियो।’

जेकरोॅ पीछू जन बोहोॅ रं
मुट्ठी भर लेॅ नै सोचै छै
जे आपने परिजन-पुरजन लेॅ
दुसरा के धन नै नोचै छै

‘वहेॅ रहै छै अमर देव रं
मृत्युलोक में, स्वर्गलोक में
ओकरे लेॅ सब विह्वल रहै छै
कठुवैलोॅ रं बहुत शोक में।’

अतिरथी कर्ण कभी की मरतै
कालोॅ के माथा पर चढ़ी केॅ
ऊ तेॅ जीत्तोॅ रहतै कल्पौं
नियति आरो भाग्यो सें बढ़ी केॅ।’

‘आय कीर्ति छै भले मलिन रं
कलको युद्ध-समर पुरला पर
अंग, अंग के कर्ण-कथा सब
घुरतै नया समय घुरला पर।’

‘ओकरे यश सें यशपति होतै
सौंसे लोक, धरा, पातालो
आय भले विपरीत काल छै
कल अनुकूल ही रहतै कालो।’

‘कलकोॅ छै इतिहास अंग के
अंगराज अतिरथी कर्णोॅ के
कल उत्सव जन्मोॅ के होतै
भले मनाबोॅ कोय मरनोॅ के।’

‘धन्य अंग तोंय अंगराज के
खुला नीड़ रं गरुढ़-बाज के
रक्षक सब लोगोॅ के लाज के
धन्य अंग तोंय अंगराज के।’