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पांच मोहर लई मारूजी बाग सिधारिया / मालवी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पांच मोहर लई मारूजी बाग सिधारिया
बागां में कसुम्बो मोलायो
म्हारा हंजा मारू घांट रंगायो
घांट जो पेरी मारूणी तम घर जो आया
नणदल मसलो जो बोली
केवो भावज भारा बापरंगायो, के थारी माय पठायो
म्हारा हंजा मारू घांट रंगायो
ससरा कमाया बईजी, सासू ने संगच्या
आलीजा भंवरा ने रंगायो
घांट जो पेरी मारूणी सेज सिधारी
सोकड़ की नजरां जो लागी
मुखड़े नी बोले, मारूणी नजरां नी देखे
सायधन को सायबो बिलखत फिरे
इन्दौर शहर को बैद बुलांवा
तारूणी की नबज बतावां
कोटा-बूंदी की मारूजी जाण बुलांवा
मारूणी पे झाड़णी नखांवा
मोहर-मोहर को मारूणी झाड़नी नखावां
रूपईया से नजर हेड़ांवा
नजरां हो देखे, मारूणा मुखड़े हो बोल्या
सायधन को सायबो हरकत फिरे
अपणा शहर में मारूणी शक्कर बटांवा
अपणा शेर में मारूणी नारेल बटांवा
मारूणी का जी की बधई।