भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पांच लघु कविताएँ / कुलदीप सिंह भाटी
Kavita Kosh से
					
										
					
					1,
बहुत मुश्किल 
होता है ढूँढना,
जब कोई खुद को
खुद के भीतर 
छिपा लेता है।
2,
कई बार थाम लेने चाहिए
अपने आगे बढ़ते पैर।
ताकि पीछे छूट चुके
अपनों की ले सके खैर।
3,
जब से सबको पता चला है 
कि मुझे रंग पसंद है,
तब से जमाना मुझे अपने 
अलग-अलग रंग दिखाने 
लग गया है।
4,
डूबते हुए सूरज को यहाँ निहारा जाता है।
ग़म में डूबते को कहाँ सहारा दिया जाता है।
5,
कुछ लोग साये की तरह 
साथ चलते हैं पर
बिलकुल ऊपर चमकते सूरज 
की तपिश में 
वो भी मुझ में दुबक जाते हैं।
	
	