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पाई है दिल ने खुशी बज़्मे-वफा में आज शाम / सादिक़ रिज़वी
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पाई है दिल ने खुशी बज़्मे-वफा में आज शाम
क्यों न फिर छलकाएं हम मदहोश होकर आज जाम
लग चुकी है चोट दिल पर खाके धोका प्यार में
भूली बिसरी बात का इस बज़्म में क्या आज काम
कोई है ग़मगीं जहां में और कोई मसरूर है
जिसकी क़िस्मत में खुशी है शाम उसके आज नाम
आज के रावण से सीता को बचाना है कठिन
हो गया है किस क़दर बेबस हमारा आज राम
शह्र में दो गज़ ज़मीं की जा नहीं है इसलिए
उठ रहे हैं सूए-सहरा जल्दी जल्दी आज गाम
शह्र की मानिंद सहरा की ज़मीं भी भर न जाए
कब्र की जा के लिए चल के भर आयें आज दाम
रंग चेहरे का तेरे 'सादिक़' उड़ा है किसलिए
क्या चुरा ली आस्मां की ज़र्द रंगत आज शाम