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पाकर सँजोने में / भारत यायावर

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और वह हो गया

बरसो सँजो रक्खा था

वह खो गया

तिल-तिल गला दिया ख़ुद को

न छक कर खाया-पिया-आराम किया

न जी भर कर अपनी की

सँजोए रहा उसे

रात-रात भर जाग कर रखवाली की

सुबह उठकर उसकी ही अर्चना की

खो जाने के डर से बाहर भी नहीं गया

अपने-आप में रहा

और वह हो गया

जिसके लिए ज़िन्दगी बरबाद की

वह खो गया


वह खो गया

अब निश्चिंत हूँ

जी भरकर खाता-सोता हूँ

दूर-दूर घूमता हूँ

दिमाग के ऊपर भूत जो सवार था

न जाने कहाँ चला गया

न उलझन, न भय

चैन से रहता हूँ

सोचता हूँ

सँजो कर रखने में

हम कितना तहस-नहस कर डालते हैं

ख़ुद को ही

खोना ही जीवन का वरदान है

और पाने

पाकर सँजोने में

पूरी दुनिया हलकान है


(रचनाकाल : 1995)