भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाखण्ड-व्रत-कथा / कात्यायनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता में यह दन्द-फन्द
छल-छन्द, गन्द-भरभण्ड।
चमचा-कलछुल-अल्टा-पल्टा
जीवन से जयचन्द... ...
आलोचक
ज्यों परमानन्द, आनन्द-कन्द-मतिमन्द... ...
घट-घट में व्यापि डकार
हे खण्ड-खण्ड पाखण्ड
जय हो... जय हो... जय हो...
जय-जय-जय-जय-जय हो...
पों ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ

रचनाकाल : अगस्त, 2000