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पागड़ी / अशोक परिहार 'उदय'

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होवै मिनख रै
माथै रो ताज
उण री लाज
मिनख राखै उण नैं
आपरै जीव सूं ई नेड़ो
घणां ई जतनां सूं
एक पिछाण है
रोब-रुतबो है
आण-कांण है
धरम रा पग है पाग
लोगड़ा पण सकै कद
अेक दूजै री उछाळता
आ अनमोल-अणबोल पाग।