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पागलपन / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
मेरे चारों ओर
जीवन की हरियाली नहीं,
बल्कि
प्रतिबंधों के अस्वस्थ
घेरे हैं, जो मेरी
उल्लसित भावनाओं को
बीमार किये डाल रहे हैं।
यहाँ...
स्वतंत्रता का खुला आकाश न होकर
बीमार/अस्वस्थ/मजबूर
साँसों का बंधन है,
मेरे चारों ओर
अनगिनत लोगों की भीड़ है,
मगर--
किसी से कोई संबंध नहीं...
क्योंकि/यहाँ रिश्तों की बुनियादें
बड़ी खोखली होती हैं।
अनुभव की ठोकरों ने
इतना तो
सिखा ही दिया है कि
इन खोखली बुनियादों पर
भावनात्मक संबंधों के
महल खड़े करना
नितांत पागलपन है।